“Future of Dugongs in Gulf of Kutch and Andaman Islands ‘Extremely Uncertain’: IUCN”

भारत में ‘सी काउ’ संकट: खाड़ी कच्छ और अंडमान में डुगोंग की प्रजाति विलुप्ति की कगार पर, IUCN की गंभीर चेतावनी

नई दिल्ली/अबू धाबी, 12 अक्टूबर 2025।
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) की नई वैश्विक रिपोर्ट ने भारत के समुद्री जैवविविधता के भविष्य पर गहरी चिंता जताई है। रिपोर्ट के अनुसार, खाड़ी कच्छ और अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह में पाई जाने वाली डुगोंग (Dugong) यानी ‘समुद्री गाय’ की आबादी का दीर्घकालिक अस्तित्व बेहद अनिश्चित और चुनौतीपूर्ण स्थिति में है।


डुगोंग: भारत की समुद्री विरासत खतरे में


डुगोंग को भारत में समुद्री पारिस्थितिकी का एक महत्वपूर्ण घटक माना जाता है। यह ‘सीग्रास’ (समुद्री घास) पर निर्भर एक दुर्लभ समुद्री स्तनपायी है, जो समुद्र की सेहत का संकेतक मानी जाती है।
IUCN की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार,

खाड़ी कच्छ में डुगोंग की एक पृथक, सीमित आबादी पाई जाती है। लेकिन यहां सीग्रास के क्षेत्र बहुत सीमित हैं, जिससे इनकी संख्या अत्यंत कम है और भविष्य में इनका जीवित रहना “अत्यंत संदिग्ध” बताया गया है।

अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में भी स्थिति चिंताजनक है। यहां के उथले तटीय क्षेत्र सीमित हैं, जो केवल छोटी संख्या में डुगोंग को ही सहारा दे सकते हैं।


दोनों क्षेत्रों — ‘दक्षिणी खाड़ी कच्छ’ और ‘दक्षिणी अंडमान द्वीप’ — को IUCN ने Important Marine Mammal Area (IMMA) घोषित किया है, पर संरक्षण प्रयास अब भी अपर्याप्त माने जा रहे हैं।

तमिलनाडु तट पर उम्मीद की किरण


रिपोर्ट ने बताया कि दक्षिण एशिया में गुल्फ ऑफ मन्नार–पाक खाड़ी क्षेत्र (Gulf of Mannar–Palk Bay) डुगोंग और सीग्रास दोनों के लिए सबसे महत्वपूर्ण आवास है।
हालांकि यहां भी डुगोंग की संख्या पिछले कुछ दशकों में काफी घट गई है।
रिपोर्ट में कहा गया —

“तमिलनाडु तट पर डुगोंग संरक्षण आरक्षित क्षेत्र की स्थापना एक सराहनीय कदम है, लेकिन इसे समुदाय आधारित संरक्षण और वैज्ञानिक शोध से और मजबूत करने की जरूरत है।”

मुख्य खतरे: जलवायु परिवर्तन से लेकर औद्योगिक विकास तक


रिपोर्ट ने स्पष्ट किया कि डुगोंग के अस्तित्व पर तीन प्रमुख खतरे मंडरा रहे हैं —

1. मत्स्य पालन गतिविधियों से टकराव और जाल में फँसना


2. सीग्रास आवासों का विनाश और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव


3. औद्योगिक विकास और तटीय अवसंरचना परियोजनाएँ, विशेषकर अगर भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलडमरूमध्य पर संपर्क परियोजनाएँ शुरू होती हैं।



वैश्विक परिदृश्य

डुगोंग की वैश्विक स्थिति अब भी ‘विलुप्ति के कगार पर (Vulnerable to extinction)’ बनी हुई है।
रिपोर्ट के अनुसार —

ऑस्ट्रेलिया और फारस की खाड़ी में आबादी अपेक्षाकृत स्थिर है,

लेकिन पूर्वी अफ्रीका, पूर्वी एशिया और कई द्वीपीय क्षेत्रों में यह प्रजाति गंभीर संकट या स्थानीय विलुप्ति का सामना कर रही है।


विशेषज्ञों की सिफारिशें

IUCN की रिपोर्ट, जो Convention on the Conservation of Migratory Species (CMS) द्वारा जारी की गई, 70 से अधिक वैज्ञानिकों और संरक्षण विशेषज्ञों के सहयोग से तैयार की गई है।
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि —

भारत को डुगोंग के लिए अलग-अलग क्षेत्रीय “रेड लिस्ट सब-पॉपुलेशन” मूल्यांकन तैयार करना चाहिए।

स्थानीय समुदायों की भागीदारी, सीग्रास बहाली, और सतत मत्स्य प्रबंधन को संरक्षण रणनीति का हिस्सा बनाना आवश्यक है।


डुगोंग क्या है?

डुगोंग एक शांत स्वभाव का समुद्री स्तनपायी है, जिसे अक्सर “सी काउ” कहा जाता है। यह मुख्य रूप से समुद्री घास पर निर्भर रहता है और समुद्री पारिस्थितिकी के लिए उतना ही आवश्यक है, जितना जंगलों के लिए हाथी।


निष्कर्ष

IUCN की यह रिपोर्ट भारत के लिए एक चेतावनी है —
अगर समय रहते ठोस संरक्षण कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में भारत अपने एक और दुर्लभ समुद्री जीव से हमेशा के लिए हाथ धो सकता है। समुद्र के इस शांत दिग्गज को बचाना न केवल जैवविविधता की जिम्मेदारी है, बल्कि हमारी पर्यावरणीय विरासत की रक्षा भी है।

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