गुजरात में केरल विश्वविद्यालय की खुदाई में मिला 5,300 साल पुराना हड़प्पा कालीन बस्ती का रहस्य
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| गुजरात के लाखापार में उत्खनन स्थल का हवाई दृश्य। फोटो: विशेष व्यवस्था |
लखापार गाँव, कच्छ (गुजरात) — 13 जून 2025:
केरल विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग ने गुजरात के कच्छ ज़िले के लखापार गाँव के पास 5,300 साल पुरानी एक प्राचीन हड़प्पा बस्ती की खोज की है। यह खोज भारतीय उपमहाद्वीप में हड़प्पा सभ्यता के शुरुआती चरणों की समझ में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर साबित हो सकती है।
इस उत्खनन का नेतृत्व प्रोफेसर अभयान जी.एस. और प्रोफेसर राजेश एस.वी. द्वारा किया गया, जिन्होंने 2022 में इस स्थल की पहचान की थी। यह बस्ती गंधी नदी के किनारे, गडुली-लखापार सड़क के दोनों ओर लगभग तीन हेक्टेयर क्षेत्र में फैली हुई है। आज यह नदी शांत है, परंतु कभी यह क्षेत्र की जीवनरेखा मानी जाती थी।
जुना खतिया से लखापार तक
लखापार की खुदाई, इससे 1.5 किलोमीटर दूर स्थित जुना खतिया के हड़प्पा कब्रिस्तान की पहले की गई खोजों को एक नया संदर्भ देती है। 2019 से अब तक वहाँ 197 कब्रों की खुदाई की जा चुकी है। अब लखापार की बस्ती की खोज से यह स्पष्ट होता है कि यह एक जीवंत और परस्पर जुड़ा हुआ सांस्कृतिक परिदृश्य था, जहाँ न केवल मृत्यु, बल्कि जीवन की कहानियाँ भी छिपी थीं।
अद्वितीय स्थापत्य और वस्तुएँ
खुदाई में स्थानीय बलुआ पत्थर और शेल से निर्मित संरचनाओं के अवशेष मिले हैं, जो योजनाबद्ध निर्माण गतिविधियों का संकेत देते हैं। यहाँ से प्रारंभिक और शास्त्रीय हड़प्पा काल की मिट्टी की कलाकृतियाँ (मृदभांड) प्राप्त हुई हैं। विशेष रूप से, "प्री-प्रभास वेयर" नामक अत्यंत दुर्लभ मृदभांड यहाँ से मिला है, जो इससे पहले केवल तीन स्थलों से ज्ञात था। यह यहाँ की सांस्कृतिक विशिष्टता को दर्शाता है।
रहस्यमयी मानव दफ़न
सबसे चौंकाने वाली खोज एक मानव कंकाल की है, जो एक साधारण गड्ढे में बिना किसी स्थापत्य चिह्न के दफ़नाया गया था। उसके साथ प्री-प्रभास मृदभांड भी मिला, जिससे संकेत मिलता है कि यह एक अनूठी अंतिम संस्कार पद्धति या अलग उपसमूह से संबंधित हो सकता है। यह इस प्रकार का पहला ज्ञात उदाहरण है।
जीवंत जीवन की झलक
खुदाई में कार्नेलियन, अगेट, अमेजोनाइट और स्टिआटाइट जैसे अर्धकीमती पत्थरों से बने मनकों, शंख आभूषणों, तांबे और मिट्टी की वस्तुओं, और रोहरी चर्ट ब्लेड जैसे औजारों की खोज हुई है। यह सिंध क्षेत्र के साथ व्यापारिक या सांस्कृतिक संबंधों का प्रमाण देता है।
इसके साथ ही मवेशियों, बकरियों, मछलियों और खाद्य शंखों के अवशेष मिले हैं, जो दर्शाते हैं कि उस समय के लोग पशुपालन के साथ-साथ जल संसाधनों पर भी निर्भर थे। पौधों और खाद्य अनाज की जानकारी के लिए पुराजैविक विश्लेषण भी जारी है।
शोधकर्ताओं की टिप्पणी
प्रो. राजेश एस.वी. के अनुसार, “गुजरात में कई प्रारंभिक हड़प्पा कालीन कब्रिस्तान तो मिले हैं, जैसे कि धनेटी, लेकिन उनसे जुड़ी बस्तियाँ अब तक नहीं मिली थीं। लखापार इस महत्वपूर्ण शून्य को भरता है, जहाँ हम जीवन और मृत्यु – दोनों को एक ही सांस्कृतिक समूह के भीतर देख सकते हैं।”
यह खोज भारतीय पुरातत्व को एक नई दिशा देती है और हड़प्पा सभ्यता के प्रारंभिक चरणों को समझने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करती है।

