2.3 करोड़ साल पुराना रहस्य! अंडमान के सक्रिय ‘मड ज्वालामुखी’ से मिले नमूने ने खोला भूगर्भीय इतिहास का पिटारा
पोर्ट ब्लेयर, 19 अक्टूबर: भारत के एकमात्र सक्रिय मड वॉल्केनो (कीचड़ ज्वालामुखी) ने वैज्ञानिकों को चौंका दिया है। भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग (GSI) द्वारा बराटांग द्वीप स्थित इस ज्वालामुखी से एकत्र किए गए नमूनों की जांच में खुलासा हुआ है कि ये लगभग 2.3 करोड़ वर्ष पुराने हैं — यानी ये ओलिगोसीन युग (Oligocene Epoch) से संबंधित हैं।
GSI के अधिकारियों के अनुसार, ज्वालामुखी के क्रेटर से निकले लिथोक्लास्ट्स (चट्टानों के टुकड़े) में मिथकारी समूह (Mithakari Group) की बलुआ पत्थर (sandstone) और शेल (shale) संरचनाएँ पाई गई हैं, जो उस समय की भूगर्भीय परतों का प्रतिनिधित्व करती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह खोज न सिर्फ अंडमान की भू-रचना को समझने में अहम साबित होगी, बल्कि यह भी बताएगी कि भारतीय प्लेट और बर्मी प्लेट के टकराव के बाद यहाँ कैसी भूगर्भीय गतिविधियाँ हुईं।
🌋 क्या है ओलिगोसीन युग?
ओलिगोसीन युग पृथ्वी के भूगर्भीय इतिहास का वह दौर था जो लगभग 3.39 करोड़ वर्ष पूर्व शुरू हुआ और 2.3 करोड़ वर्ष पहले समाप्त हुआ। यह वह समय था जब धरती पर तापमान घट रहा था, घास के मैदानों का विस्तार हुआ, और आधुनिक स्तनधारी प्रजातियों — जैसे हाथी, बिल्ली और कुत्तों के शुरुआती रूप — का विकास हुआ।
🧪 वैज्ञानिक महत्व
यह खोज दर्शाती है कि बराटांग क्षेत्र में सक्रिय भूगर्भीय प्रक्रियाएँ लाखों वर्षों से जारी हैं।
मड ज्वालामुखी के विस्फोट से निकलने वाला कीचड़, गैस और खनिज तत्व पृथ्वी के गहराई वाले हिस्सों से सतह पर आ रहे हैं, जिससे धरती के अंदरूनी तापीय और संरचनात्मक बदलावों का संकेत मिलता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस क्षेत्र में और गहराई से अध्ययन करने पर हाइड्रोकार्बन (Hydrocarbon) संसाधनों की भी संभावनाएँ खोजी जा सकती हैं।
📍 भारत का एकमात्र सक्रिय मड वॉल्केनो
बराटांग द्वीप पर स्थित यह मड ज्वालामुखी समय-समय पर सक्रिय होता रहा है। इसका आखिरी प्रमुख विस्फोट वर्ष 2005 में सुनामी के बाद दर्ज किया गया था। यह पर्यटकों के लिए भी एक आकर्षक स्थल है, जहाँ पृथ्वी की आंतरिक शक्ति को करीब से देखा जा सकता है।
संक्षेप में:
अंडमान का यह ‘कीचड़ ज्वालामुखी’ सिर्फ एक भूगर्भीय स्थल नहीं, बल्कि धरती के 2.3 करोड़ साल पुराने इतिहास का जीवंत साक्ष्य है — जो हमें बताता है कि पृथ्वी के अंदर अब भी कितनी ऊर्जा और रहस्य छिपे हैं।
